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भगवान राम ने मुँह दिखाई में दिया था यह जबरदस्त उपहार | आज भी है अयोध्या में..

Dec 11 2018

Posted By:  Sandeep

संसार में भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता है | इन्होने माता सीता के लिए त्रेतायुग के सबसे बड़े असुर मायापति रावण का अंत किया था | भगवान श्री राम माता सीता से अत्यंत प्रेम करते थे | लेकिन क्या आप जानते है की मर्यादा पुरोत्तम ने अपनी मुँह दिखाई में क्या उपहार दिया था | आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे है |


भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था | यह वर्तमान में भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित है | अयोध्या के नजदीक एक नदी बहती है जिसका नाम सरयू है | भगवान श्री राम इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के घर जन्मे थे | 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने मिथिला में शिव धनुष को तोड़कर माता सीता से विवाह किया था |

जिस दिन माता सीता ने भगवान राम के गले में वरमाला पहनाई थी, वह मार्गशीष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का दिन था | इसलिए प्रतिवर्ष इस दिन भगवान राम की शादी की वर्षगाँठ मनाई जाती है | जब भगवान श्री राम ने पहली बार माता सीता का मुँह देखा था, उन्होंने कुछ मांगने को कहा था | लेकिन कहते है की माता सीता ने प्रभु से कुछ भी नहीं माँगा |



इसलिए भगवान श्री राम ने प्रसन्न होकर अयोध्या में एक महल दिया था | जो समय के साथ आज जर्जर स्थिति में पहुँच गया | लेकिन 1891 ने ओरछा की महारानी वृषभानु ने इस महल का पुनरुद्धार करवा दिया था | वर्तमान समय में यह महल भगवान राम और देवी सीता के प्रेम के प्रतिक के रूप में स्थित है | वास्तविकता में आज यह एक मंदिर है जिसका नाम कनक भवन मंदिर है | यही वह स्थान है, जहाँ माता सीता का भवन था |  

कुछ लोगो का यह भी मानना है की इस महल को माता सीता की सास कैकई ने मुँह दिखाई के रूप में दिया था | अधिकांशतः इतिहासकार इसी बात को मानते है | इनमे से कौनसी बात सही है और कौनसी गलत, इसे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है | लेकिन कुछ लोगो का यह भी मानना है की भगवान श्री राम ने माता सीता को दूसरी शादी ना करने का वचन अवश्य दिया था | लेकिन किसी प्रकार का महल उन्हें नहीं दिया | 


कनक भवन मंदिर का कई बार निर्माण हो चूका है | ऐसा माना जाता है की भगवान श्री के पुत्र कुश ने सबसे पहले इस कनक महल को मंदिर में बदल दिया था | उन्होंने यहाँ भगवान श्री राम और सीता माँ की मूर्ति स्थापित करवा दी थी | कुछ इतिहासकारो का यह भी मानना है की जब द्वापर युग में कृष्ण भगवान ने जरासंध का वध किया था तो वापस लौटते समय इस मंदिर का एक बार पुनः जीर्णोद्धार करवाया था | 
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